शादी में तोहफे के लेन-देन की न जाइज़ और जाइज़ सूरत




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शादी में तोहफे के लेन-देन की न जाइज़ और जाइज़ सूरत

⭕आज का सवाल नो।३४१८⭕


शादी में खाने के बाद पैसे का कवर, न्योता, हदिया, चांदले, वेहवार देना कैसा है?


अगर कोई दे तो मना करने की और लेने की क्या सूरत होगी?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

फकीहुल अस्र हज़रत मुफ़्ती रशीद लुधयानी रहमतुल्लाहि अलैहि तहरीर फ़रमाते है ऐसे न्यौते में चंद खराबियाँ है।

१ ये हदिया (व्यवहार, चांदला, ) की रकम या सामान ज़बरदस्ती वसूल किया जाता है, इस तौर पर के न देने वालों को बुरा कहा जाता है।

(आजकल तो निकलने के रास्ते पर टेबल ही लगा दिया जाता है और नाम लिखे जाते है, इसलिए आदमी शर्मा शर्मी में न देने का इरादा हो तो भी दे देता है, शर्म में डालकर दिली रज़ामंदी के बगैर वसूल करना भी जाइज़ नहीं)

२। देने वाले की निय्यत शोहरत और नाम कमाने की होती है, ऐसी निय्यत से जाइज़ काम भी न जाइज़ हो जाते है।

३। उस रस्म को फ़र्ज़ और वाजिब की तरह पाबन्दी और एहतेमाम से अदा किया जाता है।

(हैसिय्यत या इरादा न हो तो भी क़र्ज़ा ले कर देते है)

हालांकि इस क़िस्म की पाबन्दी और ज़रूरी समझने से जाइज़ और मुस्तहब  काम को भी छोड़ देना वाजिब हो जाता है।

४। ये रकम और सामान बा क़ायदा लिखा जाता है, जिन का मोके पर अदा करना ज़रूरी समझा जाता है, और सख्त ज़रूरत के बगैर क़र्ज़ का लेन देन न जाइज़ है।

कर्ज होने की सूरत में उस की अदायगी, मौत होने की सूरत में उस में विरासत की तक़सीम, उस का इस्तेमाल और इन्तिक़ाल के बाद आइन्दह ये क़र्ज़ा किस को अदा किया जाये इस के बहुत से पेचीदह मसाइल खडे हो जाते है,  जो मुफ़्तियाँ व उलामा इ किराम से मालूम किये जा सकते है।

लिहाज़ा ये लेन-देन न जाइज़ है

📗ख़राबी १ से ४ अहसानुल फ़तवा ५/१४८
और नं – ५ मारीफुल कुरान आयत से माखूज़


अगर कोई दे तो अच्छे अंदाज़ से उज़्र कर दे फिर भी ज़बरदस्ती करे तो कहे के, अगर आप का दिल पन्द्रह बिस दिन बाद भी चाहे तो उस वक़्त दे देना।

🗃️ ऑनलाइन दारुल इफ्ता देवबंद

इस बारे में बाज़ जगह का उर्फ़ अलग होता है के वहाँ के लोग दावत देने में हदिया तोहफा लेने की न निय्यत करते है न उस के लेने के टेबल लगाते है। ना देने वाले देने को ज़रूरी समझते है बल्कि मुहब्बत पैदा करने या उस की मदद और ता’वून की निय्यत से अपनी हैसियत के मुताबिक़ देता हो और लेने वाला उस को लिखता न हो और कोई न दे तो उस को बुरा न समझता हो तो ये हदिये का लैन दैन जाइज़ बल्कि सुन्नत के दाइरे में आयेगा, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के हदिये का आपस में लैन दैन करो इस से आपस की मुहब्बत बढती है लेकिन ऐसे इलाके बहुत कम है फिर भी जहाँ का जो उर्फ़ हो उस के मुताबिक़ हुक्म लगाया जाएगा। हर शख़्स के लिए हर जगह न जाइज़ का हुक्म लगाना भी सहीह नहीं ।

अल मसाइलुल मुहिम्मा

नॉट

*इस बारे बाज़ लोग इसे सूद और हराम केहकर बहुत सख्त हुक्म लगा देते है जो सहीह नहि।

मसलन बाज़ लोग इस निय्यत से देते है के मेरे वहाँ तक़रीब होगी तो ये इस से ज़यादा देगा और बाज़ लोग जितना उस ने दिया था उस से ज़यादा देना ज़रूरी या बेहतर समझते है तो ऐसी निय्यत से लैन दैन करना सुरतन सूद है लेकिन हक़ीक़तन सूद नहीं क्यूँ के इस में लेने देने से पहले से ज़यादती की शर्त नहीं होती इसलिए इसे हलाल सूद कहा गया है।

इब्नै अब्बास रदिअल्लाहु अन्हु की रिवायात के मुताबिक  ऐसे लैन दैन से न सवाब मिलेगा न गुनाह।

कः अहकमुल क़ुरान जिस्से रज़ी
सुरह ए रूम आयत – ३९

و اللہ اعلم بالصواب

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया