हाजियों का दावत करना उन को दावत खिलाना
⭕आज का सवाल नंबर १४१६⭕
हाजयों का हज से जाने से पहले दावत करना या उन को दावत खिलाना कैसा है ? हमारे इलाके में उस को ज़रूरी समजा जाता है और उस में तमाम रिश्तेदार और दोस्तों की दावत की जाती है। लोग अपने पर हज फ़र्ज़ होने में इन ख़र्चों को भी शुमार करते है तो ऐसी दावत करना या उस में शरीक होना कैसा है?
🔵जवाब🔵
مدا و مصلیا و مسلما
हज से जाने से पहले नफ़्से दावत करने में कोई हरज नहीं। शरीअत के किसी हुक्म की खिलाफ वर्ज़ी की नौबत न आये तो जाइज़ है।
लेकिन आज कल हाजी के दावत करने में या उन को दावत खिलाने में जो खराबियां पैदा हो गई है उस की वजह से ये ये दावत करना या खिलाने का तरीकाः क़ाबिले तर्क-छोड़ देने के क़ाबिल है।
कयूं के दावत को ज़रूरी समझना हुज़ूर सलल्लाहु अलय्हि वसल्लम, सहाबा ए किराम रदियल्लाहु अन्हु, अयिम्माह ए मुजतहिदीन, सलफे सलिहीन से साबित नहीं। इस में हाजी बा काइदह अपने हज का ऐलान करता है, तस्वीर खिंचवाता है, नारे लगवाता है, इस दावत के ज़रिये रियाकारी और फ़ख्र गरूर में मुब्तला होता है,
हज के नाम पर मरदों औरतों का मिलाप और बेपर्दगी होती है। जाने से पहले कपडे, लिफ़ाफ़े वगैरह तोहफा देना और वापसी पर उस का एवज़ तमाम देनेवाले को लौटाना ज़रूरी समझ जाता है। इन ख़र्चों को भी हज फ़र्ज़ होने के खर्चे में शामिल समझा जाता है। इन ख़र्चों को पूरा करने के लिए बाज़ लोग सुदी क़र्ज़ तक ले लेते है।
लिहाज़ा ऐसी रस्मी दावत करने और खाने और खिलाने से परहेज़ करना चहिये।
📗फतवा कास्मियाह जिल्द १२ सफा १७६ से १७९ का खुलासाह
و الله اعلم بالصواب
इस्लामी तारिख : १ ज़ीलक़दह १४३९ हिजरी
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.